Tuesday, October 27, 2009

नमस्कार

ईश्वरके दर्शन करते समय अथवा ज्येष्ठ या सम्माननीय व्यक्तिसे मिलनेपर हमारे हाथ अनायास ही जुड जाते हैं । हिंदू मनपर अंकित एक सात्त्विक संस्कार है `नमस्कार' । भक्तिभाव, प्रेम, आदर, लीनता जैसे दैवीगुणोंको व्यक्त करनेवाली व ईश्वरीय शक्ति प्रदान करनेवाली यह एक सहज धार्मिक कृति है । नमस्कारकी योग्य पद्धतियां क्या है, नमस्कार करते समय क्या नहीं करना चाहिए, इसका शास्त्रोक्त विवरण यहां दे रहे हैं ।

1. नमस्कारके लाभ

alt

मूल धातु `नम:'से `नमस्कार' शब्द बना है । `नम:' का अर्थ है नमस्कार करना, वंदन करना । `नमस्कारका मुख्य उद्देश्य है - जिन्हें हम नमन करते हैं, उनसे हमें आध्यात्मिक व व्यावहारिक लाभ हो ।

व्यावहारिक लाभ : देवता अथवा संतोंको नमन करनेसे उनके गुण व कर्तृत्वका आदर्श हमारे समक्ष सहज उभर आता है । उसका अनुसरण करते हुए हम स्वयंको सुधारनेका प्रयास करते हैं ।

आध्यात्मिक लाभ :

१. नम्रता बढती है व अहं कम होता है ।
२. शरणागिति व कृतज्ञताका भाव बढता है ।
३. सात्त्विकता मिलती है व आध्यात्मिक उन्नति शीघ्र होती है ।

2. मंदिरमें प्रवेश करते समय सीढियोंको नमस्कार कैसे करें ?

सीढियोंको दाहिने हाथकी उंगलियोंसे स्पर्श कर, उसी हाथको सिरपर फेरें । `मंदिरके प्रांगणमें देवताओंकी तरंगोंके संचारके कारण सात्त्विकता अधिक होती है । परिसरमें फैले चैतन्यसे सीढियां भी प्रभावित होती हैं । इसलिए सीढीको दाहिने हाथकी उंगलियोंसे स्पर्श कर, उसी हाथको सिरपर फेरनेकी प्रथा है । इससे ध्यानमें आता है कि, सीढियोंकी धूल भी चैतन्यमय होती है; हमें उसका भी सम्मान करना चाहिए ।

3. देवताको नमन करनेकी योग्य पद्धति व उसका आधारभूत शास्त्र क्या है ?

alt

अ. `देवताको नमन करते समय, सर्वप्रथम दोनों हथेलियोंको छातीके समक्ष एक-दूसरेसे जोडें । हाथोंको जोडते समय उंगलियां ढीली रखें । हाथोंकी दो उंगलियोंके बीच अंतर न रख, उन्हें सटाए रखें । हाथोंकी उंगलियोंको अंगूठेसे दूर रखें । हथेलियोंको एक-दूसरेसे न सटाएं; उनके बीच रिक्त स्थान छोडें ।

आ. हाथ जोडनेके उपरांत, पीठको आगेकी ओर थोडा झुकाएं ।
इ. उसी समय सिरको कुछ झुकाकर भ्रूमध्य (भौहोंके मध्यभाग)को दोनों हाथोंके अंगूठोंसे स्पर्श कर, मनको देवताके चरणोंमें एकाग्र करनेका प्रयास करें ।
ई. तदुपरांत हाथ सीधे नीचे न लाकर, नम्रतापूर्वक छातीके मध्यभागको कलाईयोंसे कुछ क्षण स्पर्श कर, फिर हाथ नीचे लाएं ।
इस प्रकार नमस्कार करनेपर, अन्य पद्धतियोंकी तुलनामें देवताका चैतन्य शरीरद्वारा अधिक ग्रहण किया जाता है ।

साष्टांग नमस्कार : षड्रिपु, मन व बुद्धि, इन आठों अंगोंसे ईश्वरकी शरणमें जाना अर्थात् साष्टांग नमस्कार ।

4. वयोवृद्धोंको नमस्कार क्यों करना चाहिए ?

Doing Namaskar to elders

घरके वयोवृद्धोंको झुककर लीनभावसे नमस्कार करनेका अर्थ है, एक प्रकारसे उनमें विद्यमान देवत्वकी शरण जाना । वयोवृद्धोंके माध्यमसे, जीवको आवश्यक देवताका तत्त्व ब्रह्मांडसे मिलता है । उनसे प्राप्त सात्त्विक तरंगोंके बलपर, कष्टदायक स्पंदनोंसे अपना रक्षण करना चाहिए । इष्ट देवताका स्मरण कर की गई आशीर्वादात्मक कृतिसे दोनों जीवोंमें ईश्वरीय गुणोंका संचय सरल होता है ।

5. किसीसे मिलनेपर हस्तांदोलन (हैंडशेक) न कर, हाथ जोडकर नमस्कार करना इष्ट क्यों है ?

१. जब दो जीव हस्तांदोलन करते हैं, तब उनके हाथोंसे प्रक्षेपित राजसी-तामसी तरंगें हाथोंकी दोनों अंजुलियोंमें संपुष्ट होती हैं । उनके शरीरमें इन कष्टदायक तरंगोंके वहनका परिणाम मनपर होता है ।

Avoid a Hand Shake: It tranfers undesirable raja-tama components!

२. यदि हस्तांदोलन करनेवाला अनिष्ट शक्तिसे पीडित हो, तो दूसरा जीव भी उससे प्रभावित हो सकता है । इसलिए सात्त्विकताका संवर्धन करनेवाली नमस्कार जैसी कृतिको आचरण्में लाएं । इससे जीवको विशिष्ठ कर्म हेतु ईश्वरका चैतन्यमय बल तथा ईश्वरकी आशीर्वादरूपी संकल्प-शक्ति प्राप्त होती है ।

Doing Namaskar to each other
३. हस्तांदोलन करना पाश्चात्य संस्कृति है । हस्तांदोलनकी कृति, अर्थात् पाश्चात्य संस्कृतिका पुरस्कार । नमस्कार, अर्थात् भारतीय संस्कृतिका पुरस्कार । स्वयं भारतीय संस्कृतिका पुरस्कार कर, भावी पीढीको भी यह सीख दें ।

6. मृत व्यक्तिको नमस्कार क्यों करना चाहिए ?

त्रेता व द्वापर युगोंके जीव कलियुगके जीवोंकी तुलनामें अत्यधिक सात्त्विक थे । इसलिए उस कालमें साधना करनेवाले जीवको देहत्यागके उपरांत दैवगति प्राप्त होती थी । कलियुगमें कर्मकांडके अनुसार, `ईश्वरसे मृतदेहको सद्गति प्राप्त हो', ऐसी प्रार्थना कर मृतदेहको नमस्कार करनेकी प्रथा है ।

7. विवाहोपरांत पति व पत्नीको एक साथ नमस्कार क्यों करना चाहिए ?

विवाहोपरांत दोनों जीव गृहस्थाश्रममें प्रवेश करते हैं । गृहस्थाश्रमें एक-दूसरेके लिए पूरक बनकर संसारसागर-संबंधी कर्म करना व उनकी पूर्ति हेतु एक साथ बडे-बूढोंके आशीर्वाद प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण है । इस प्रकार नमस्कार करनेसे ब्रह्मांडकी शिव-शक्तिरूपी तरंगें कार्यरत होती हैं । गृहस्थाश्रममें परिपूर्ण कर्म होकर, उनसे योग्य फलप्राप्ति होती है । इस कारण लेन-देनका हिसाब कम निर्माण होता है । एकत्रित नमस्कार करते समय पत्नीको पतिके दाहिनी ओर खडे रहना चाहिए ।

8. किसीसे भेंट होनेपर नमस्कार कैसे करें ?

किसीसे भेंट हो, तो एक-दूसरेके सामने खडे होकर, दोनों हाथोंकी उंगलियोंको जोडें । अंगूठे छातीसे कुछ अंतरपर हों । इस प्रकार कुछ झुककर नमस्कार करें । इस प्रकार नमस्कार करनेसे जीवमें नम्रभावका संवर्धन होता है व ब्रह्मांडकी सात्त्विक-तरंगें जीवकी उंगलियोंसे शरीरमें संक्रमित होती हैं । एक-दूसरेको इस प्रकार नमस्कार करनेसे दोनोंकी ओर आशीर्वादयुक्त तरंगोंका प्रक्षेपण होता है ।

9. नमस्कारमें क्या करें व क्या न करें ?

  1. नमस्कार करते समय नेत्रोंको बंद रखें ।
  2. नमस्कार करते समय पादत्राण धारण न करें ।
  3. एक हाथसे नमस्कार न करें ।
  4. नमस्कार करते समय हाथमें कोई वस्तु न हो ।
  5. नमस्कार करते समय पुरुष सिर न ढकें व स्त्रियोंको सिर ढकना चाहिए ।

अधिक जानकारी हेतु अवश्य पढे सनातनका ग्रंथ - नमस्कारकी योग्य पद्धतियां

सनातन संस्था विश्वभरमें धर्मजागृति व धर्मप्रसारका कार्य करती है । इसीके अंतर्गत इस लेखमें `हिंदू संस्कृतिके प्रतीक नमस्कार संबंधी जानकारी, नमस्कारकी योग्य पद्धति तथा नमस्कार करनेपर होनेवाले लाभ' इस विषयपर अंशमात्र जानकारी प्रस्तुत की गई है । अधिक जानकारीके लिए संपर्क करें :sanatan@sanatan.org

महात्मा गान्धी

जन्म २ अक्तूबर
स्थान पोरबंदर, काठियावाड़, भारत
मृत्यु ३० जनवरी १९४८ (७८ वर्ष की आयु में)
स्थान नई दिल्ली, भारत
मृत्यु का कारणह्त्या
शिक्षा युनिवर्सिटी कॉलिज, लंदन
प्रसिद्धि कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवनसाथी कस्तूरबा गाँधी
बच्चे हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास

मोहनदास करमचंद गांधी (अक्तूबर" class="mw-redirect">2 अक्तूबर 1869 - जनवरी" class="mw-redirect">30 जनवरी 1948) भारत">भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम" class="mw-redirect">भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे।वह सत्याग्रह">सत्याग्रह - व्यापक सविनय अवज्ञा">सविनय अवज्ञा के माध्यम से अत्याचार (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव [ अहिंसा] अथवा संपूर्ण अहिंसा">अहिंसा पर रखी गई थी जिसने भारत को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम" class="mw-redirect">आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता के प्रति आंदोलन के लिए प्रेरित किया।उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है। संस्कृत भाषा">संस्कृत: महात्मा">महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">सम्मान सूचक शब्द जिसे सबसे पहले रवीन्द्रनाथ ठाकुर">रवीन्द्रनाथ टेगौर ने प्रयोग किया और भारत में उन्हें बापू के नाम से भी याद किया जाता है गुजराती भाषा">गुजराती બાપુ बापू अथवा (पिता)उन्हें सरकारी तौर पर 'राष्ट्रपिता. (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">राष्ट्रपिता 'का सम्मान दिया गया है २ अक्टूबर" class="mw-redirect">२ अक्टूबर को उनके जन्म दिन भारत में छुट्टियाँ (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">राष्ट्रीय पर्व'गांधी जयंती">गांधी जयंती' के नाम से मनाया जाता है और दुनियाभर में इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।

सबसे पहले गांधी ने रोजगार अहिंसक सविनय अवज्ञा">सविनय अवज्ञा प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ़्रीका">दक्षिण अफ्रीका, में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष हेतु प्रयुक्त किया। १९१५ में उनकी वापसी के बाद उन्होंने भारत में किसानों , कृषि मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्याधिक भूमि कर और भेदभाव के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए एकजुट किया। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस">भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद गांधी जी ने देशभर में गरीबी से राहत दिलाने, महिलाओं के अधिकारों का विस्तार, धार्मिक एवं जातीय एकता का निर्माण, आत्म-निर्भरता के लिए दलित">अस्पृश्‍यता का अंत आदि के लिए बहुत से आंदोलन चलाएं। किंतु इन सबसे अधिक विदेशी राज से मुक्ति दिलाने वाले स्वराज">स्वराज की प्राप्ति उनका प्रमुख लक्ष्‍य था।गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर लगाए गए नमक कर के विरोध में १९३० में [नमक सत्याग्रह|दांडी मार्च ]] और इसके बाद १९४२ में , ब्रिटिश भारत छोड़ो (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">भारत छोड़ो छेडकर भारतीयों का नेतृत्व कर प्रसिद्धि प्राप्त की। दक्षिण अफ्रीका और भारत में विभिन्न अवसरों पर कई वर्षों तक उन्हें जेल में रहना पड़ा।

गांधी जी ने सभी परिस्थितियों में अहिंसा">अहिंसा और सत्य">सत्य का पालन किया और सभी को इनका पालन करने के लिए वकालत भी की। उन्होंने साबरमती आश्रम">आत्म-निर्भरता वाले आवासीय समुदाय में अपना जीवन गुजारा किया और पंरपरागत भारतीय 'धोती">पोशाक धोती और सूत से बनी शॉल पहनी जिसे उसने स्वयं ने 'चर्खा (पृष्ठ मौजूद नहीं है)">चरखे ' पर सूत कात कर हाथ से बनाया था। उन्होंने सादा शाकाहार">शाकाहारी भोजन खाया और आत्मशुद्धि तथा सामाजिक प्रतिकार दोनों के लिए लंबे-लंबे उपवास">उपवास भी किए।



मच्चार का फोटू